Friday, August 6, 2010

कर दे माफ़ उसे

चुप-चाप मैं चलता रहा,
'उफ़' एड़ियों की कुचलता रहा I

देखा गया तुझसे नहीं

दो दम जो रुक के थम गया,
एक भले पेड़ की छांव में,
उस बद्सीब को ही 
ईनाम गाज का दे दिया I

बक्श दे उसे
उठ रहा हूँ मैं
चल रहा हूँ में

ग़र मुझे शह देना ही कुसूर था 
तो कर दे माफ़ उसे,
वो तो बस एक नेक फ़ितरत पेड़ है
मेरे रुकने की सजा उसे तो न दे I

तपती = hot, burning, एडियाँ = heels, गाज = thunderbolt, शह = shelter, asylum,  कुसूर = fault , नेक फ़ितरत = well meaning

दम है तेरी अदाओं में
जो क़त्ल के इल्ज़ाम को
झुक के करतीं हैं कुबूल
और,
दबे होंठ कहती हैं शुक्रिया I

Monday, August 2, 2010

तुकबंदी

पलक, फ़लक, झलक, हलक, छलक, तलक
कुछ आदत सी हो गयी है तुकबंदी की,
ग़र न मिले
तो इतनी तकलीफ
के काफिया जमा ही नहीं,
ग़ज़ल ग़र्क हो गई I

पर किसने कहा है
हर बार मिलेगा ही
तुक से तुक
सुर से सुर

नाकाम रिश्तों का मेला सा है,
गुज़र जाती है उम्र इस इंतज़ार में,
के जुगलबंदी होगी
तुकबंदी होगी

और तुम, ग़ुलाम कलम के,
एक मिसरे को रोते हो ??

तुकबंदी = rhyme, पलक = eyelids, फ़लक = sky, horizon, झलक = glimpse, हलक = throat, छलक = spill over, तलक = up till, काफिया = rhymes, ग़र्क = to drown, जुगलबंदी = harmony (musical terms), ग़ुलाम = slave, कलम = pen, मिसरा = verse, couplet 

श्रद्धांजली

यह कविता ०२/०९/१९९९ को लिखी गयी थी, मेरा जन्मदिन.
पर मेरा मन ठीक नहीं था क्योंकि कुछ ही दिनों पहले हमारे जनरल मेनेजर श्री अनिल भाटिया जी का निधन २८/०८/१९९९ को हुआ था. ये कुछ पंक्तियाँ उन्ही को अर्पित श्रद्दा सुमन हैं (9th sep 1999 issue 'The Brief' में प्रकाशित) -

क्षुब्ध ह्रदय की शीत गति
क्षत मानस की सभी प्रति,
दुःख गहन, सभी नतमस्तक हैं
नम नयन सभी के भरसक हैं I

रुंधे गले में शब्द नहीं
कर सकें जो तुमसे व्यक्त सही -
क्या दशा हुई अंतर्मन की,
कण - कण की और जन - गण की I

उस मंद हास्य की याद लिए
उस दृढ निश्चय को साथ किये,
उन पदचिन्हों को बना दिशा,
होगा चलना अब तेरे बिना I

स्मृति तुम्हारी संग धरे
पल - पल अब भी पास हो तुम,
अर्पित श्रद्धांजली पुष्प तुम्हे
हम सब का विश्वास हो तुम II

क्षुब्ध = hurt, शीत गति = cold pace, क्षत = wounded,  प्रति = replica, गहन = deep, नतमस्तक = heads bowing, नम = moist, भरसक = to the brim, रुंधे = overwhelmed, अंतर्मन = inner self, पदचिन्हों = footprints, श्रद्धांजली = tribute

Sunday, August 1, 2010

एक टांग वाली मेज़

नाज़ुक सी
बिलकुल अलग,
बीचों बीच दरख़्त के तने सी
वो एक टांग वाली मेज़...

गोल तश्तरी सा ताज सागवान का,
उस पर इतना बोझ सामान का,
तन के खड़ी है,
सबकुछ संभाले,
मानो कितना आसान था I

मुझे तो दो बक्शीं हैं तूने,
फिर क्यों वक़्त बेवक़त,
लड़खड़ा कर
धम्म से गिरा जाता हूँ मैं ??

दरख़्त = tree, तश्तरी = tray, ताज = crown, सागवान = teak wood, बक्शीं =  bestowed, granted