Monday, July 18, 2011

सीवन

(the chadar is the government we choose hoping that it will some day save us when we need it to. the real test of it is to save us from the fury of our very own people)


लाल गुलाबी चकतों वाली पुरानी सी चादर 
बीच बीच में दोहरी सिलाई
के कहीं उधड न जाए सीवन
आधी रात में ही 
जब काला अँधेरा
घनघोर अँधेरा
आकर घेर लेगा चहुँ दिस से

एक एक टांका
हूंक भरा
बेहिचक चुभोता दमख़म से, हर तेज़ झोंके को
के कहीं उधड न जाए सीवन 
आधी रात में ही 
जब बर्फानी तूफ़ान 
छुरे सा नुकीला तूफ़ान 
आकर घेर लेगा चहुँ दिस से

चादर पे चादर जोड़ कसी
ऐंठ भरी डोरी का जोर 
परख हुए है सीवन की 
आधी रात में ही
बचा लिए जो हमको सब
अपनों के ही विष से 
जो,
आकर घेर लेगा चहुँ दिस से

सीवन = the stitches, चकतों = patches, दोहरी = double, चहुँ दिस = from all four sides, हूंक = grunt/groan, ऐंठ = twist, परख = test/judgement

Sunday, July 17, 2011

बिदाई

बड़े-बड़े जाँबाज़ों को
बच्चों सा बिलखते देखा है
बीच समुंदर की तह में 
अंगार सुलगते देखा है

हैवानों की दुनिया में
पीरों का मेला देखा है
अनहोनी का होना और
पत्थर का पिघलना देखा है

मुड़-मुड़ के बिछड़ना देखा है 
रुक-रुक के चलना देखा है
पलकों पे थमीं उन बूंदों का
बेबाक़ छलकना देखा है

रह-रह कर आनेवाली उन 
यादों का सताना देखा है
वीराने में बेबस से 
देखा है हमने उनको चुप
कहते थे कभी जो सीना तान 
'हमने तो ज़माना देखा है'


जाँबाज़ = daredevils, बिलखना = weep, तह = sea bed, अंगार = burning coal, सुलगना = smolder/ignite, हैवान = devil,  पीर = saint, बेबाक़ = unabashed/not ashamed, वीराना = ruins, बेबस = helpless

Saturday, February 12, 2011

फ़र्क

लांघते-फांदते उन्ही दीवारों को
बदहवास से हांफे जाते हैं,
जिन्हें खुद ही ने
ईंट दर ईंट
बतौर सरहद, हाल ही में चुनवाया था

हद्द बंदी की वो रोक-टोक
किया कई हमवतनों को जुदा जिसने,
वही लकीरें
आज घुटनों के बल
घिसट घिसट कर
रेंगते हुए मिटाने कि कोशिश क्यों?

बैठ गद्दी पे जो हुक्म हांके
आज बिखरे बिखरे से हैं
उन्ही उसूलों के मोती I
रौंद कर अपने ही कदमों तले
क्यों शर्मिंदा से फरार हुए जाते हों?

ये क्या तौर है
क्या तरीका है
कैसे हैं ये कायदे
जिन्हें जाँ देकर हम निभाएं
और
तुम धुंद समझ पार किये जाते हों

लांघते-फांदते = hopping and jumping across, बदहवास = out of breath, हांफे = panting, बतौर सरहद = as a legitimate boundary, हद्द बंदी = border line, हमवतनों = fellow countrymen, फरार = escape, धुंद = mist



Thursday, January 20, 2011

दिल का कहा

इधर काफ़ी दिनों से कुछ लिखा ही नहीं हिन्दी में. ऐसा नहीं के कुछ सूझा नहीं. पर हिन्दी मेरे दिल ही भाषा है. व्यवसाय और रोज़मर्रा की ज़रूरतों ने अंग्रेजी को इस कदर अनिवार्य बना दिया है के अधिकतम समय इस विदेशी भाषा के सहारे ही कटता है. यहाँ तक के आजकल मैंने सोचना भी अंग्रेज़ी में ही शुरू कर दिया है.

पर एक समय आता है जब सिर्फ और सिर्फ हिन्दी में स्वयं को व्यक्त करने का मन करता है. वो है संवेदना और अनुभूति का समय.
कुछ छू जाए दिल को, या फिर उसे चकनाचूर ही कर जाए तो आह बस इस एक ही भाषा में निकलती है.
उस पीड़ा का बोध इतना गहरा के उसके बोझ तले अंग-अंग एक मृत-देह का हिस्सा प्रतीत होता है.

कैसे कोई लिख सकता है प्राणहीन सन्नाट हाथों से. 
उंगलियाँ जो एक 'पहचान फीते' की बाट जोह रही हों, कलम किस कर उठाएंगी?
रोम-रोम निश्वास सुराखों में बसी ये भाषा आज उतनी ही निर्थक है जितना के ये निर्जीव शव.

जा रही हूँ उस संजीवनी की तलाश में जो फिर से सचेत कर सके इस दिल को और उसकी भाषा को