Friday, October 11, 2013

जादुई जेबखर्च

मुझे जेबखर्च मिलता है। और जेबखर्च में मिलते हैं २४ घंटे।

रोज़ के रोज़।

मेरी बुद्धि, ज़रुरत और इच्छा के अनुसार मैं उन २४ घंटों को खर्च करती हूँ। जादुई जेबखर्च है ये।

रोज़ मन भर के खर्च करने पर भी कुछ न कुछ घंटे बच ही जाते हैं। बचत भी ऐसी के न किसी खाते में जमा कर सके कोई और न ही ब्याज खा सके।

हर दिन की बची  पूँजी को आँखें मूँद कर वापस कर देती हूँ; उसी को जिसने दिए थे।
बही-खाता बराबर।

फिर अगली सुबह मेरे हाथों में वही जादुई जेबखर्च रख दिया जाता है। पूरे २४ घंटे।

Monday, March 25, 2013

What Sindhutai Sapkal said...(marathi)

दुःखा ने दुःख पटकन टिपता येता.

माणुस कधीच वाईट नसतो, माणसाच्या पोटाची भूख वाईट असते.

बाई नहीं तर काही नहीं.

तुम्ही तरी घरी बायकोला कधीतरी 'थकलीस का' म्हणत ज़ा ना.

जब तक गाल पे गोश्त तब तक यार भी दोस्त.

मला ज़गताना त्रास नाही जहाला, पुस्तक लिहताना जहाला.

घरामध्ये कोन्हाला काय अवड्त ते तिला पाठ अस्त पण तिला काय अवड्त ते कुन्हाला माहिती पण नस्त.

आजच्या जगात 'भाषण नाही तर राशन नाही'.