Tuesday, July 27, 2010

झलक






(यह कविता १९९० में लिखी गयी थी, जब मैंने दसवीं की परीक्षा दी थी )

कविता का सन्दर्भ है - विश्वामित्र ने मेनका को सागर तट पर देखा. यह घटना उस दृश्य से पहले की है जब वह उन्हें रिझाने और उनकी तपस्या भंग करने आती है. मेनका ने जानबूझ कर उनका ध्यान उस समय आकर्षित करना चाहा जब वे समुद्र तट पर विचरण कर रहे थे. उनकी दृष्टि उस पर पड़ते ही वह एक झलक दिखा कर लुप्त हो गयी. इस घटना ने विश्वामित्र के मन में एक कुतूहल को जन्म दिया. उस ही का परिणाम है यह कविता :

वह मृगनयनी छलने आई
आ, सौंदर्य तट पर लहराई,
लहरा - लहरा कर रही पुकार
थी प्रत्येक शब्द में एक झंकार I

आँखों से छलका मदिरा रस
यूँ छलक-छलक कर गिरता था -
पीने को व्याकुल भ्रमर हुए,
हर भ्रमर, भ्रमर से भिड़ता था I

कर रहे ठिठोली कन्धों पर
सघन घन सम उसके केश सधे,
नागों से लहराते बहते
आर्द्र पवन संग खेल रहे I

मुखचन्द्र कमल सा लिए हुए
यह कौन अप्सरा आई है?
स्वर्णिम आभा की स्वामिनी
अद्भुत सम्मोहन शक्ति पाई है I

मनुष्य मात्र के वश में क्या
देवों के व्रत पर है भारी,
एक झलक दिखा कर लुप्त हुई
मृगनयनी वह सुकुमारी I

मृगनयनी = Doe eyed woman, भ्रमर = Bees, ठिठोली = play around, सघन = Dense, घन = Clouds, सम = like, similarly, आर्द्र = Humid,

फेर चुका हो जो नज़र
दौलत - ए - इश्क के खज़ाने से,
क्या  ख़ाक बुलाते हो उसे
चंद सिक्कों का वास्ता दे कर??
                 

Monday, July 26, 2010

चंद सलवटों का फांसला

दूरियों का क्या हिसाब 
घटती बढ़तीं है दरमियाँ ,
वो तो चंद सलवटों का फांसला है
जो मिटाए न मिटे
घटाए न घटे I


सलवट = Crease (generally on cloth or bedcover)

Thursday, July 22, 2010


                                                                                                        

Wednesday, July 21, 2010

ख्वाइश ही नही...







( ये पंक्तियाँ कुछ वर्षों पहले लिखी गयी थीं )

ख्वाइश ही नही के संग चलें 
फिर भी हर पल का साथ है,


सिर्फ ग़ैरों में नही
अपनों में भी वो बात है,
के ख्वाइश ही नही संग चलें
फिर भी हर पल का साथ है I

नब्ज़ पे थिरकती हैं उँगलियाँ
पर नब्ज़ की पकड़ नही,
जानता नही
मैं वजह सही
पर कुछ इस कर के हालात हैं,
के ख्वाइश ही नही संग चलें
फिर भी हर पल का साथ है I

हश्र है रिश्तों का यही आजकल-
ज्यों सहर की तय है शब्,
और हर शब् की जब्रन रात है I
ख्वाइश ही नही के संग चलें
फिर भी हर पल का साथ है II

गैर = stranger, ख्वाइश = wish, नब्ज़ = pulse, थिरकती = dancing, हालात = circumstances, हश्र = result, conclusion, सहर = morning, शब् = evening, जब्रन = forcefully 


आ कर लगा होता सीधा निशाने पर,

तो अच्छा होता I
क्यों नस - नस को चीर कर,
पूछता है मेरे दिल का पता, ये खंजर ??

नस = veins, खंजर = dagger