"उस भयानक दैत्य के प्राण-पखेरू एक तोते में कैद थे", कहानियों में ऐसा पढ़ा था, जब मैं छोटी थी.
"प्राण-पखेरू" यह शब्द सुन कर ही मैं हंसने लगती और कहती, "वो फुर्र्र्रर्र्र्रर से उड़ गए"! कभी इस शब्द की उत्पत्ति या संवेदनशीलता को जानने का प्रयास ही नहीं किया. ध्यान में आता तो बस "फुर्र्र्रर्र्र्र", क्योंकि चिड़िया के बारे में ही तो बात हों रही थी. चिड़िया रुपी प्राणों की.
आज-कल मेरी बिल्ली की तबियत काफ़ी खराब है. पिछले ३ महीनों से वो जूझ रही है अपने भविष्य से.
उसकी आँखें धीरे-धीरे पथरीली और शरीर शिथिल पड़ते जाती हैं, दिन पर दिन.
पहले, रोज़ दौड़ी-दौड़ी आती थी दरवाज़े पर जब भी मेरे पति आफ़िस से वापस आते. स्वागत के लिए 'म्याऊ-म्याऊ' करते हुए एकदम तैनात. करीबन १०-११ किलो की बिल्ली, जो भी देखे यही कहता था "बाप रे कितनी मोटी है". आस-पड़ोस के पुलिसवाले तो यह तक पूछ बैठे थे "चीते का बच्चा तो नहीं पाल रखा आपने, इजाज़त नहीं है ऐसा करने की". हम हँस-हँस कर गर्व से लोट-पोट हुए जाते थे.
आज ३-४ किलो की भी नहीं रह गयी है मेरी 'जोजो'.
यही नाम दिया है हमनें प्यार से उसे. एक बच्चे सा पला है.
जानती हूँ, सबके समझ आनेवाली बात नहीं है यह. सिर्फ पशु-प्रेमी ही जानते हैं एक पालतू प्राणी का महत्त्व. कह दे कोई की बिल्लियाँ वफ़दार या स्नेही नहीं होतीं, लड़ ही पड़ेंगे मैं और मेरे पति उनसे.
अब जब मैं उसे देखती हूँ, मेरा मन करता है उसकी आँखों में झाँक कर बात करूं उस पंछी से, जिसका नाम है "प्राण-पखेरू" और रो-रो कर विनती करूं, के मत उड़ जाना.
मेरे बचपन के हास-परिहास का प्रतिशोध, मूक जोजो से मत लेना.
ईश्वर आपकी जोजो को स्वस्थ व लम्बी आयु प्रदान करें...
ReplyDeleteसुशील जी, शुभकामना के लिए धन्यवाद. अगर वह ठीक हुई तो आपकी दुआओं का असर भी उसमे शामिल होगा.
ReplyDelete(आपका 'ज़िन्दगी के रंग' ब्लॉग मुझे काफ़ी पसंद आया. वक़्त मिलते ही पूरा बढ़ने की इच्छा है. शीघ्र ही.)
नमस्ते वंदनाजी!
ReplyDeleteयेह तो मै पुरा पढ ना सकी, जोजो की बीमारी सून के बहुत दु:ख हुआ| आपकी भावना मै समझती हू| बिल्ली एक पालतू जानवर नही है| वह तो अपने मालिक को मा मानती है|
वह कितनी प्यारी है| फोटो देखके बात करने का मन होता है|
पढकर बहुत दुख:हुआ.हमारा भी ११ साल का एक प्यारा कुत्ता था. नवंबर 2011 में एक बेरहम टेम्पो ने उसे कुचल दिया.उस वक्त हम घरपर भी नही थे,उसको पानी भी नही पिला सके.
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