इंसाफ का पक्का
भेद-भाव से परे
अकेलापन सच्चा है सौ टका
भीड़ में
या अकेले में
आके साथ हो लेता है कहीं भी
कभी भी
एकाकी एकांत
चाहो तो करीब है
न चाहो
तो इतना लम्बा फ़ासला
जो नापे न नपे
कहीं भी
कभी भी
भेद-भाव से परे
अकेलापन सच्चा है सौ टका
भीड़ में
या अकेले में
आके साथ हो लेता है कहीं भी
कभी भी
एकाकी एकांत
चाहो तो करीब है
न चाहो
तो इतना लम्बा फ़ासला
जो नापे न नपे
कहीं भी
कभी भी