ऐश है
आराम है
नौकरों की रेल है
बित्ती भर न काम है
लाड़ है
प्यार है
चाहता है हर कोई
भीड़ बेशुमार है
उंगलियाँ जो थम गयीं
चीज़ पर किसी कहीं
न रोक है
न टोक है
चीज़ मुझको मिल गयी
नैन नक्श तीर से
रंग साफ़ सा मिला
आईने से है दोस्ती
नहीं रही कभी गिला
सभी तो है हासिल मगर
क्यों नहीं मैं झूमती
हर्ष से
उल्हास से ?
अडिग से उस विश्वास से?
के
आपे नहीं सम्हल सके
ख़ुशी के फूल इतने हों
बाकी है क्या, जो रह गया,
कहीं तो कुछ
खाली है क्यों?
Nice. Vandu, it's always better to have some 'khali' space in life....so there is no 'bhid' and there is some space to be filled.... that's what I feel. :)
ReplyDelete:)
ReplyDelete"उंगलियाँ जो थम गयीं
ReplyDeleteचीज़ पर किसी कहीं
न रोक है
न टोक है
चीज़ मुझको मिल गयी"
भविष्य भी ऐसा हो हार्दिक शुभकामनाएं
सभी तो है हासिल मगर
ReplyDeleteक्यों नहीं मैं झूमती
हर्ष से
उल्हास से ?
अडिग से उस विश्वास से?
सब कुछ है पर मन में कहीं अवसाद है...मन का कोई कोना अभी खाली है...सुंदर रचना...
http://veenakesur.blogspot.com/
मौज ले रहे हैं
ReplyDeletehttp://merajawab.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना|
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
nice one..
ReplyDeletehey thanks binary...so nice to see u here :)
ReplyDeleteपढ़ते पढ़ते एक व्यक्तित्व नज़रों के सामने उभर आता है . .
ReplyDeleteशुरू से ही वो चुभन महसूस होने लगती है जो अंत में उजागर है ..
बहुत प्रबल रचना !!