Sunday, September 12, 2010

कहीं तो कुछ...

ऐश है
आराम है
नौकरों की रेल है
बित्ती भर न काम है

लाड़ है
प्यार है
चाहता है हर कोई
भीड़ बेशुमार है

उंगलियाँ जो थम गयीं
चीज़ पर किसी कहीं
न रोक है
न टोक है
चीज़ मुझको मिल गयी

नैन नक्श तीर से
रंग साफ़ सा मिला
आईने से है दोस्ती
नहीं रही कभी गिला

सभी तो है हासिल मगर
क्यों नहीं मैं झूमती
हर्ष से
उल्हास से ?
अडिग से उस विश्वास से?
के
आपे नहीं सम्हल सके
ख़ुशी के फूल इतने हों
बाकी  है क्या, जो रह गया,
कहीं तो कुछ
खाली है क्यों?

10 comments:

  1. Nice. Vandu, it's always better to have some 'khali' space in life....so there is no 'bhid' and there is some space to be filled.... that's what I feel. :)

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  2. "उंगलियाँ जो थम गयीं
    चीज़ पर किसी कहीं
    न रोक है
    न टोक है
    चीज़ मुझको मिल गयी"

    भविष्य भी ऐसा हो हार्दिक शुभकामनाएं

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  3. सभी तो है हासिल मगर
    क्यों नहीं मैं झूमती
    हर्ष से
    उल्हास से ?
    अडिग से उस विश्वास से?

    सब कुछ है पर मन में कहीं अवसाद है...मन का कोई कोना अभी खाली है...सुंदर रचना...

    http://veenakesur.blogspot.com/

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  4. मौज ले रहे हैं
    http://merajawab.blogspot.com

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  5. बहुत सुन्दर रचना|

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  6. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  7. hey thanks binary...so nice to see u here :)

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  8. पढ़ते पढ़ते एक व्यक्तित्व नज़रों के सामने उभर आता है . .
    शुरू से ही वो चुभन महसूस होने लगती है जो अंत में उजागर है ..
    बहुत प्रबल रचना !!

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