Wednesday, July 21, 2010

ख्वाइश ही नही...







( ये पंक्तियाँ कुछ वर्षों पहले लिखी गयी थीं )

ख्वाइश ही नही के संग चलें 
फिर भी हर पल का साथ है,


सिर्फ ग़ैरों में नही
अपनों में भी वो बात है,
के ख्वाइश ही नही संग चलें
फिर भी हर पल का साथ है I

नब्ज़ पे थिरकती हैं उँगलियाँ
पर नब्ज़ की पकड़ नही,
जानता नही
मैं वजह सही
पर कुछ इस कर के हालात हैं,
के ख्वाइश ही नही संग चलें
फिर भी हर पल का साथ है I

हश्र है रिश्तों का यही आजकल-
ज्यों सहर की तय है शब्,
और हर शब् की जब्रन रात है I
ख्वाइश ही नही के संग चलें
फिर भी हर पल का साथ है II

गैर = stranger, ख्वाइश = wish, नब्ज़ = pulse, थिरकती = dancing, हालात = circumstances, हश्र = result, conclusion, सहर = morning, शब् = evening, जब्रन = forcefully 

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