Friday, October 11, 2013

जादुई जेबखर्च

मुझे जेबखर्च मिलता है। और जेबखर्च में मिलते हैं २४ घंटे।

रोज़ के रोज़।

मेरी बुद्धि, ज़रुरत और इच्छा के अनुसार मैं उन २४ घंटों को खर्च करती हूँ। जादुई जेबखर्च है ये।

रोज़ मन भर के खर्च करने पर भी कुछ न कुछ घंटे बच ही जाते हैं। बचत भी ऐसी के न किसी खाते में जमा कर सके कोई और न ही ब्याज खा सके।

हर दिन की बची  पूँजी को आँखें मूँद कर वापस कर देती हूँ; उसी को जिसने दिए थे।
बही-खाता बराबर।

फिर अगली सुबह मेरे हाथों में वही जादुई जेबखर्च रख दिया जाता है। पूरे २४ घंटे।

No comments:

Post a Comment