Monday, August 2, 2010

श्रद्धांजली

यह कविता ०२/०९/१९९९ को लिखी गयी थी, मेरा जन्मदिन.
पर मेरा मन ठीक नहीं था क्योंकि कुछ ही दिनों पहले हमारे जनरल मेनेजर श्री अनिल भाटिया जी का निधन २८/०८/१९९९ को हुआ था. ये कुछ पंक्तियाँ उन्ही को अर्पित श्रद्दा सुमन हैं (9th sep 1999 issue 'The Brief' में प्रकाशित) -

क्षुब्ध ह्रदय की शीत गति
क्षत मानस की सभी प्रति,
दुःख गहन, सभी नतमस्तक हैं
नम नयन सभी के भरसक हैं I

रुंधे गले में शब्द नहीं
कर सकें जो तुमसे व्यक्त सही -
क्या दशा हुई अंतर्मन की,
कण - कण की और जन - गण की I

उस मंद हास्य की याद लिए
उस दृढ निश्चय को साथ किये,
उन पदचिन्हों को बना दिशा,
होगा चलना अब तेरे बिना I

स्मृति तुम्हारी संग धरे
पल - पल अब भी पास हो तुम,
अर्पित श्रद्धांजली पुष्प तुम्हे
हम सब का विश्वास हो तुम II

क्षुब्ध = hurt, शीत गति = cold pace, क्षत = wounded,  प्रति = replica, गहन = deep, नतमस्तक = heads bowing, नम = moist, भरसक = to the brim, रुंधे = overwhelmed, अंतर्मन = inner self, पदचिन्हों = footprints, श्रद्धांजली = tribute

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