Wednesday, October 20, 2010

खरा सिक्का

(यह कविता मैंने तब लिखी थी जब मैं सातवी या आठवी में पढ़ती थी.)

खोटे-खोटे सिक्के
है खोटी ये नोट
खोटे सारे लोग वो
जो करते नहीं वोट

छोटा सा हूँ मैं
पर न छोटी ये बात
के वोट नहीं करते हैं
हम और आप

बड़ी बड़ी ऐनक में
लगते सब कूल
लीपा-पोती याद रही
वोटिंग गए भूल

मम्मी है प्यारी
पर करती नहीं वोटिंग
कहे छुट्टी है आज
चलो चलें boating

ये बात अच्छी नहीं
जानते हैं सभीं
मैं भी कहीं
बनूँ ऐसा नहीं

इस से भला
मैं तो छोटा सही
क्योंकि, सिक्का खरा हूँ मैं,
खोटा नहीं

3 comments:

  1. इस से भला
    मैं तो छोटा सही
    क्योंकि, सिक्का खरा हूँ मैं,
    खोटा नहीं

    बहुत ही सुन्‍दर पंक्तियां ।

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  2. very nice vandu! i think during next elections you should make a short film on this! :)

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